एक पुलिस अधिकारी और 12 ग्रामीण युवकों को डाकू बता कर फर्जी मुठभेड़ में मारने वाले तीन पुलिसकर्मियों को मौत की सजा

मैं आरडी शुक्ला स्वतंत्र भारत अखबार में नया नया क्राइम रिपोर्टर बना था अचानक 12 मार्च 1982 की रात को हमारे संपादक विरेंद्र सिंह जी ने हमको बुलाया और बोले गोंडा में एक पुलिस अधिकारी और 12 डकैत मारे गए आपको मालूम है यह खबर उनको एजेंसी से मिली थी मैंने कहा नहीं उन्होंने कहा यह बताओ क्या इधर पूर्वांचल में 12 डकैतों का कोई गिरोह है मैंने कहा सर पूर्वांचल में केवल हर शंकर तिवारी और शाही का गिरोह है और उनके गिरोह में भी 12 लोग नहीं हैं पौल अंका है यह डकैत कहां से आ गए जो पुलिस ने मार गिराया हैं मैंने कहा हमारे रिकार्ड में नहीं है मेरी जानकारी में नहीं है उन्होंने कहा तुरंत तुम गोंडा के माधवपुर में जाओ और इस घटना की छानबीन करो रात को ही मैं अखबार की अपनी गाड़ी से गोंडा के लिए रवाना हो गया करनैलगंज पहुंचकर वहां मैं रुका सन 1982 में कर्नलगंज है आगे जाने के लिए मैं ठीक से रास्ता था और ना कोई साधन सुबह पता किया तो मालूम हुआ कि माधवपुर जाने के लिए खड़ खड़ा मिलेगा मैं मेरा मित्र विजेंद्र खरे फोटोग्राफर आरके खड़े-खड़े पर बैठकर टेढ़ी नदी होते हुए घंटों के सफर के बाद माधवपुर पहुंचे वहां की हालत देखकर हम लोग दंग रह गए एक घर जल रहा था चार और पीएसी लगी हुई थी और उनकी ऐसी वालों के अलावा वहां और कोई नहीं था ना कोई कुछ बताने वाला और ना कुछ समझाने वाला हम लोगों ने वहां के हालात का जायजा लिया पीएसी वालों ने बोलने से इंकार कर दिया एक जगह पर हम लोगों ने देखा लाइन से खून के निशान थे नीचे ऐसा लग रहा था छोटी उम्र के लोगों को मारकर यहां लिटाया गया था हम लोगों ने फोटोग्राफ की इत्तेफाकन वहां कोई वरिष्ठ अधिकारी नहीं था फिर हम लोगों ने उस घर जिस में आग लगी हुई थी उसकी खोजबीन की कुछ कागजात मिले जो आधे जले हुए थे उसके बाद वहां से हम लोग आगे निकल गए वहां पता यह चला कि वहां कोई बुला 1 पंडित नामक डकैत आया था जिसको पुलिस ने मुठभेड़ में मारा अब यही बात उस पूरे क्षेत्र में थी फिर हम लोग बहुत दूर तक चले गए बहुत भूख लग रही थी सो एक गांव में हम लोग रात को रुक गए वहीं पर हम लोगों ने बेर कोड और पानी पीकर कुछ ग्राम वासियों को अपने विश्वास में लेकर पूछताछ की जीवन की यह प्रथम रिपोर्टिंग थी ज्यादा कुछ जानते भी नहीं थे पुलिस की गतिविधियां भी नहीं जानते थे कि उनकी क्या कारनामे होते हैं फिर भी जी जान से हम लोग लग गए और वहां की हर गतिविधियों की फोटो करते चले गए रात वहां गुजारने के बाद यह मालूम हो गया था यह मुठभेड़ फर्जी थी वहां कोई डकैत नहीं आया था केवल वहां पर किसी की बरसी मनाई जा रही थी गोंडा क्षेत्र में जब किसी की मृत्यु होती है उसके 1 वर्ष बाद उस की बरसी मनाई जाती है और तब खाना पीना और रिश्तेदारों का बुलाना भीड़भाड़ होती है सिर्फ वही थी इसी बीच वहां एक जगह बरसी हो रही थी अचानक पुलिस पहुंची गोलियां चलने लगी एक अधिकारी मरा उसके बाद पुलिस वालों ने वहां जितने भी नौजवान मिले उनको एक लाइन से लगा कर गोलियों से भून दिया वह सबूत हम लोगों के पास था एक ही जगह 12 लोगों को लाइन से लगा कर गोली मारी गई थी खून के निशान और फोटोग्राफ मिल गई 100 के करीब हमने फोटो करवाई और फिर वहां से हम लोग गोंडा की ओर रवाना हुए मुख्यालय कि वहां चलकर उन लाशों को देखा जाए जो लोग मारे गए हैं और अधिकारियों से बात की जाए इत्तेफाक था कि हमारे गोंडा पहुंचने से पहले कभी कोई रिपोर्टर लखनऊ मुख्यालय से उन जिलों में नहीं गया था बस वहां के रिपोर्टर जो खबर भेज देते थे वही यहां लखनऊ में आकर छप जाती है हम लोग जब गोंडा पहुंचे तू बड़ा आश्चर्य हुआ कि वह 2 दिन से लाशों का पोस्टमार्टम में ही नहीं हुआ था हम लोगों ने उसकी फोटो और जोड़ी और गोंडा कोतवाली पहुंचे पता चला यहां पर कप्तान है यशपाल सिंह और कोतवाल के कमरे में बैठे हैं हम लोग धूल से और भूख से परेशान थे जो उन्होंने मुंहास कोतवाली में धोकर उनको कहलाया कि हम लोग लखनऊ से आए हैं कृपया हम लोगों से भी बात कर ले कोतवाल ने आकर हम लोगों को जवाब दिया कि साहब कह रहे हैं कि हम बहुत पत्रकारों से बात कर चुके हैं हमारा अधिकारी मारा गया है अब हम ज्यादा प्रेस वालों से बात नहीं कर पाएंगे और उन्होंने साफ अपना बयान देने से इनकार कर दिया इसी बीच हम लोगों ने महसूस किया कि कुछ लोग हम लोगों का पीछा कर रहे हैं तभी हम लोगों ने वहां से तत्काल निकल जाने का इरादा बनाया वहां से निकलते ही कुछ लोग हम लोगों के पीछे लगे हम लोग रेलवे स्टेशन पहुंचे फिर बस स्टैंड और वहीं से हम लोगों ने पीछा करने वालों को धोखा दे दिया और किराए के वाहन से लखनऊ आ गए सहारा समाचार सारी कहानी वहां कि हम लोग ले चुके थे मैं रिपोर्टर जरूर नया था मसाला बहुत इकट्ठा कर लिया था रात को हम लोग पहुंचे प्रमुख कार तो मेरा था फोटोग्राफर से हमने  फोटो बनाने के लिए कह दिया और सुबह प्रेस में मिलने को बोला हम लोग नहीं जानते थे क्या कर रहे हैं यह हम लोग क्या कर के लाए हैं यह मालूम था कि सब मामला फर्जी था सुबह 10:00 बजे कार्यालय पहुंचे फिर हमारे संपादक विरेंद्र सिंह जी जब इस समय स्वर्गवासी हो चुके हैं पहुंचे हमने उनको पूरा घटनाक्रम से अवगत कराया उनकी मेज पर सारी फोटोग्राफ रखकर बताया कि है नवयुवकों को पकड़कर मारा गया है मामला सब फर्जी है वहां कोई डकैत नहीं था और पुलिस अधिकारी भी किसी साजिश के तहत मारा गया है वह आश्चर्य में थे नया-नया रिपोर्टर क्या लेकर आ गया है हमारे संपादक वीरेंद्र सिंह जी से उच्च स्तर पर थे डॉक्टर एसएन घोष जो पायनियर अखबार और स्वतंत्र भारत दोनों के वह प्रमुख थे हमारे संपादक उनके पास हमारी खबर लेकर चले गए उन्होंने उनसे बात करके माधवपुर कांड से संबंधित सारे फोटोग्राफ सारी चीजें उनको समझाएं उन्होंने कौन लाया है उन्होंने बताया कि नया लड़का है आरडी शुक्ला उसको भेजा था हम घो घोष साहब ने हमको बुलाया और कहां तुम तो देखते रहते हो कब से यहां काम कर रहे हो हमने कहा 1 साल हो गया बोले यह सब तुम लेकर आए हो उन्होंने तुरंत अपने स्टेनो जो कि एक महिला थी उनसे एक पत्र टाइप करवाया जो मुझे ₹100 पुरस्कार का था और कहा तुम बहुत अच्छी स्टोरी लेकर आए हो क्या तुम्हारा यहां अभी कुछ नौकरी पक्की है हमने कहा अभी मैं उन्होंने क्या वह भी हो जाएगी उन्होंने संपादक से पायनियर और स्वतंत्र भारत अखबार मैं इस पूरी खबर को पूरे विस्तार से लेने के लिए आदेश दिया हमारी खबर बहुत विस्तार से और लगभग 50 फोटो के साथ दोनों अखबारों में छवि दूसरे दिन मैं अपनी खबर से बहुत प्रसन्न होकर सबसे बधाइयां ले रहा था तभी मेरे पास एक पुलिस का गनर आया और बोला कि आपको साहब नीचे बुला रहे हैं मैंने नीचे जाकर देखा एक एम्बेसडर कार में गोंडा केएसपीएस पाल सिंह बैठे हुए थे वहां जोड़कर कह रहे थे कि आपने यह क्या छाप दिया हमने कहा जो हमको मिला सच्चाई मिली मैंने वह छापा है आपसे मैंने कहा था कि आप अपना भी स्पष्टीकरण दे दे आपने बात करने से इनकार कर दिया था लिहाजा  मैं वापस आ गया और जो खबर मेरे पास थी वह मैंने लगा दी वह हाथ जोड़ो कर बोले कि अब माफ कीजिएगा मैंने कहा मैं कुछ नहीं कर सकता मेरे वरिष्ठ लोगों ने जो उचित समझा वह किया और वह चले गए तब तक माधवपुर कांड पर इस मुठभेड़ पर प्रश्न चिन्ह लग चुका था चारों ओर इसकी हाहाकार मची हुई थी हमारे अखबार के बल पर  इस फर्जी मुठभेड़ में मारे गए वरिष्ठ पुलिस अधिकारी केपी सिंह की पत्नी विभा सिंह ने जो उन दिनों गोंडा में ही परगना अधिकारी थे उन्होंने अपने पति की हत्या किए जाने का आरोप लगाते हुए प्रदेश भर में वरिष्ठ लोगों से इस मुठभेड़ की शिकायत की और जांच की मांग की लेकिन उनको प्रदेश में जांच के संबंध में किसी प्रकार की कोई सफलता नहीं मिली हताश होकर वे उच्चतम न्यायालय याचिका लेकर पहुंची उच्चतम न्यायालय ने उनकी बात को सुना और घटना की सीबीआई से जांच का आदेश दिया सीबीआई में मुकदमा दर्ज कर हम लोगों से बात की और उसके बाद रिपोर्ट दर्ज कर जांच पड़ताल शुरू की पूरा मामला फर्जी पाया गया पुलिस ने 16 पुलिसकर्मियों को फर्जी मुठभेड़ में दोषी पाया बाद में सीबीआई में अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया  अभी 1913 में अदालत ने इस पर फैसला सुनाया जिसमें तीन पुलिसकर्मियों को मौत की सजा सुनाई गई इत्तेफाक की बात यह थी मृत पुलिस अधिकारी की पत्नी विभा सिंह इस मामले में संघर्ष करते-करते न्याय की दरकार के लिए इतना थक गई कि उनको कैंसर हो गया और 2004 में उनकी मृत्यु हो गई उनकी दो पुत्रियां है एक किंजल सिंह जब कई जिलों की जिलाधिकारी भी रह चुकी है जिस दिन आरोपित पुलिसकर्मियों को सजा सुनाई गई वह वहां हाजिर थे लेकिन इत्तेफाक था और मुझे अफसोस था जिस महिला ने पुलिसकर्मियों को अति मेहनत कर के संघर्ष करके सब का विरोध झेल गए सजा दिलवाई वह वहां नहीं थी लेकिन मैं वहां सजा एलान के टाइम में मौजूद था मैंने खबर लिखी थी शायद यह पहला मामला होगा जिसमें पुलिस वालों को 31 साल बाद मौत की सजा अदालत ने सुनाई इसमें संघर्ष पायनियर स्वतंत्र भारत अखबार और उसके रिपोर्टर के साथ साथ सबसे बड़ा योगदान मृत अधिकारी की पत्नी का था मैं विभा सिंह के संघर्ष को सर माथे पर लेते हुए उनको बहुत-बहुत नमन करता हूं मैंने तो कहानी लिख दी थी लेकिन उस को अंजाम तक पहुंचाने का काम सजा दिलवाने का काम स्वर्गीय विभा सिंह जी ने किया था और साथ में अपनी दोनों पुत्रियों को वरिष्ठ अधिकारी बनाया यह कोई मामूली संघर्ष नहीं था इसके आगे पीछे भी बहुत कुछ कहानी जुड़ी हुई है ऐसा नहीं है की सजा पाने वाले लोगों ने हम लोगों को हानि पहुंचाने में कोई कसर छोड़ी लेकिन कहते हैं सांच को आंच नहीं बस इसीलिए हम लोग कामयाब हुए


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