कराहना कांड डीआईजी ने अपनी हनक बनाने के लिए 12 निर्दोष लोगों को कथित डाकू बता कर मुठभेड़ में मरवा दिया

सच्ची कहानियों का सिलसिला जारी रखते हुए मैं आरडी शुक्ला आपको एक ऐसी हैरतअंगेज मुठभेड़ के बारे में बताने जा रहा हूं जिसमें 12 जाने सिर्फ इसलिए ले ली गई कि डीआईजी साहब को पूरे पूर्वांचल में अपनी हनक बनानी थी यह मामला 1986 में बस्ती जिले के कराना गांव में हुआ मैं 1981 के बाद से मुठभेड़ देखते देखते फर्जी मुठभेड़ों की पूरी हकीकत जान गया था यही नहीं कई एक मुठभेड़ों में पुलिस ने विश्वास करते हुए हमको साथ में भी रखा इसलिए मैं पक्की तौर पर पुलिस की मुठभेड़ की कहानी समझने और जानने लगा कि आखिर फर्जी मुठभेड़ होती कैसे है और असली मुठभेड़ कैसे होती है 1 दिन रात माधवपुर कांड की तरह मैं प्रेस में बाहर घूम रहा था अचानक हमारे संपादक वीरेंद्र सिंह जी ने मुझे अपने पास अचानक जल्दी बुलवाया और कहां की बस्ती के कराना गांव में 12 लोगों को मुठभेड़ में मारा गया है उनको डकैत बताया जा रहा है क्योंकि हम जानते थे पूर्वांचल में 12 डकैतों का कोई गिरोह नहीं है लिस्ट में ही नहीं है जो पुलिस की होती है मैंने अपने संपादक से कहा कि चंबल के बीहड़ों में यमुना के बीहड़ों में तो डाकू की संख्या 12 से अधिक वाली भी है लेकिन पूर्वांचल में कोई ऐसा गिरोह नहीं है 12 डाकुओं का उन्होंने फिर वही कहा क्या आप प्रेस की जीत लेकर तुरंत रवाना हो जाए घटनास्थल की ओर मैं रात्रि को फोटोग्राफर को लेकर बस्ती जाने वाली अपनी प्रेस की गाड़ी भर सवार हो गया उसमें अखबार भी भरे हुए थे जो गाड़ी जगह- जगह जलती जा रही थी सुबह तक हम लोग बस्ती पहुंचे वहां से हम लोगों ने कर रहना गांव की दूरी पूछी जो मेहदावल थाने के अंतर्गत आता था पता चला कि बस्ती से 70 80 किलोमीटर है नेपाल बॉर्डर के पास जंगलों में है हम लोग गाड़ी से कराना की तरफ निकले रास्ते में बीहड़ जंगल मिलते गए और हम लोग दिन भर वहां चलते रहे रास्ते में बियाबान जंगल की जंगल था और आगे चलकर करहाना गांव के पास और भी बेहद उत्साह दिखाई दिया हम लोग 2:00 बजे के करीब वहां पहुंचे पता चला यह मुठभेड़ हुई थी और 12 लोग मारे गए यह भी पता चला एक मास्टर साहब से किस गांव में पिछले कई वर्षों से दो गुटों में भयंकर रंजिश चली आ रही है दोनों तरफ के काफी लोग मारे जा चुके हैं उसी गिरोह को आधार बनाकर पुलिस में कराना गांव को अपना मुठभेड़ स्थल बनाया था वहां जो बातें पता चली उनको सुनकर हम लोग सन्न रह गए वहां फोटोग्राफी करते रहे आसपास लोगों से पता किया तो पता चला की पुलिस एक बस में रात को मारे गए सभी लोगों को लेकर आई थी वह बस एक नाले में भी फस गई थी इन्हीं मारे गए लोगों उसे धक्का दिलवाकर उसको निकाला गया था मारे गए सभी लोगों को और पुलिस वालों ने खूब जमकर शराब पी रखी थी सभी लोग खूब नाचते गाते मौज मस्ती करते कराना पहुंचे थे यहां पर पहुंचने के बाद पुलिस ने तेवर बदला और जिन लोगों को लेकर आई थी उनको गोलियों से एक घर के भीतर और बाहर मारना शुरू कर दिया 11 लोगों को तो वही पुलिस ने देर कर दिया जब मैंने देखा था अधिकांश सब एक ही घर में मारे गए थे लेकिन यहां पर सबसे अजूबा यारा जो पुलिस की विफलता का कारण भी बना की एक कथित डाकू पुलिस के चंगुल से भाग निकला और वह जिंदा कई गांव पार कर गया सुबह उसको दूर के गांव से एक चौकीदार के बताने पर फिर पुलिस पकड़ कर लाई और उसे फिर कराना में लाकर मारा गया यह सब किस्सा सब शराब के नशे में रात भर होता रहा क्योंकि वह स्थल नेपाल की सीमा से लगा हुआ भीषण जंगल में था इसलिए वहां पुलिस का तांडव होता रहा और कोई बोलने वाला नहीं था हम लोगों ने वहां को बातचीत की और इस नतीजे पर पहुंच गए यह मारे गए लोग डाकू नहीं थे महज जबरन एक डीआईजी बीपी सिंह ने तीन चार थानों की पुलिस को हुकुम दिया गया था की एक बड़ी मुठभेड़ करनी है इससे पूरे पूर्वांचल में तहलका मच जाए और बड़ी संख्या में करनी है इसलिए कई थाने अपने अपने यहां बदमाशों को पकड़कर इकट्ठा कर ले कई दिन पहले से कई थानों में इन बेचारे आंखों को जिसमें बाद में पता चला किक छोटू भैया अपराधी जिसमें फेरीवाले और मामूली किस्म के अपराधी थानों ने पकड़ पकड़ कर अपने आप बंद कर लिया और एक दिन जब हुकुम हुआ डीआईजी साहब का तो सबको बस में बैठाकर गवाते बजाते और शराब पिलाकर उन्हें बस में बैठा कर कराना गांव लाया गया जहां पर दो गिरोहों के बीच में आपसी रंजिश चल रही थी उसी रंजिश का परिणाम दिखा कर इन लोगों को गोलियों से भून दिया गया और अखबार वालों सब को बता दिया गया यह गिरोह दूसरे गिरोह को यहां मारने आया था तब तक पुलिस पहुंच गई और उसने इन बदमाशों और डाकू को मुठभेड़ में मार गिराया लेकिन यह तथ्य उसी दिन चुटकुला दिया गया जब एक अप कथित अपराधी पुलिस की गिरफ्त से कई गांव दूर पहुंचकर सच्चाई खोलने लगा लेकिन बाद में चौकीदार ने पकड़ कर वापस पुलिस को दे दिया यह सुबह का वक्त था उसके अन्य साथी रात को मारे गए थे उसे सुबह प्रातः काल मारा गया यहीं पर पुलिस का ही है हनक वाला काम का भंडाफोड़ हो गया डकैतों के पास से जो हथियार दिखाए गए जिनसे उन्होंने पुलिस से मुकाबला किया वह भी जंग लगे फरसे और बांके थे हम लोगों ने जब मुआयना किया थानों के नाती यारों का कठिन डाकू के पास से मिले थे और उनकी फोटो खींचने लगे  तो पुलिस वाले घबराकर हम लोगों से सीधा युद्ध करने लगे सर हम लोग वहां से चले आए रास्ते में हम लोगों को स्थानी संवादाता मिले जो शाम के वक्त घटनास्थल पर जा रहे थे यानी 24 घंटे बाद लोकल अखबार के संवाददाता घटनास्थल पर पहुंच रहे थे जब की खबर मुख्यालय से एक दिन पहले ही इन लोगों ने दे दी थी कि 12 डकैत मारे गए हम लोग को वापस आते समय विधानसभा में विरोध पक्ष के नेता मुलायम सिंह यादव घटनास्थल की ओर जाते हुए काफी हाहाकार मच चुका था हम लोग सायं 7:00 बजे करीब बस्ती पहुंचे वहां से हमने अपने संपादक को एक जगह से फोन मिलवाया उस समय मोबाइल तो था नहीं एक्सचेंज के थ्रू ट्रंक काल मिलाया संपादक को बताया हमने किया मुठभेड़ पूरी तरह फर्जी है और हम लोग देर रात तक लखनऊ पहुंचेंगे खबर रास्ते में मैं बना लूंगा आप रात को ब्लॉक बनाने वाले और कुछ कर्मचारियों को रोक लीजिएगा कभी हम लोग 12:01 बजे रात तक ही पहुंच पाएंगे पूरे रास्ते में खबर बनाता रहा शायद ऐसी मुठभेड़ उत्तर प्रदेश  पुलिस ने कभी नहीं की होगी रात करीब 12:00 बजे हम लोग लखनऊ पहुंचे यहां फोटो  के ब्लॉक बनाने के लिए दे दिए गए हमारे साथी जगदीश जोशी जी स्टोरी लिखने के लिए तैयार बैठे थे मैं स्टोरी बोलता गया जोशी जी स्टोरी लिखते गए कहानी हमारे अखबार में चली गई कि किस तरह पुलिस ने शराब पिलाकर निर्दोष लोगों को डाकू बताकर कराहना गांव में ले जाकर मार डाला दूसरे दिन अखबार में खबर छपते ही जो कि मेरे नाम से छपी थी खूब बवाल मच गया विधानसभा में खुलकर मुलायम सिंह जी ने हंगामा किया वह खुद भी हो आए थे कराना गांव डीआईजी से लेकर नीचे पुलिस तक सभी को निलंबित किया गया उच्च स्तरीय जांच बैठी विधानसभा में हंगामा तब शांत हुआ जब मुलायम सिंह जी ने इस मुठभेड़ की पूरी धज्जियां उड़ा दी और सच्चाई खोल कर रख दी और चिल्लाकर कहा केस मुठभेड़ कांड की सच्चाई स्वतंत्र भारत अखबार मैं आरडी शुक्ला जी ने लिखी है सबसे बड़ा अच्छा काम यह हुआ सभी पुलिसकर्मियों को सजा तो मिली मिली कराहना कांड के बाद से पुलिस ने कोई भी बड़ा फर्जी मुठभेड़ कांड नहीं किया मानव अधिकार भी इसके बाद सक्रिय हो गया और तमाम इतने सख्त कानून बन गए कि जो मनमानी फर्जी मुठभेड़ है सन 8182 से जो चल रही थी बंद हो गई  हमारे ख्याल से यह सामूहिक फर्जी मुठभेड़ की अंतिम घटना थी इसके बाद मैं आपको स्वयं आंखों देखी मुठभेड़ों की कहानी सुनाऊंगा यह भी बताऊंगा कैसे मुठभेड़ों की फर्जी लिखित पढ़त होती थी आप हमारी वेबसाइट जरूर पढ़ते रहिए गा आपको बहुत रोचक चीजें मिलेंगी नई नई कहानियां तो आप हर जगह पढ़ रहे हैं लेकिन यह जो पुरानी यादें हैं इनके मजेदार मंजर आपको कुछ अलग ही आनंद देंगे इन घटनाओं को मैंने जान हथेली पर लेकर खोजा है और अब आपके सामने खोल कर रख रहा हूं आपका आरडी शुक्ला जारी


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