यारों आप सब भले ही मजाक समझो आप सब भले ही अजीब समझो लेकिन मेरी मजबूरी थी घर से निकलकर सीधा पोस्टमार्टम हाउस जाता था वहां के हेड स्वीपर श्यामलाल से और रमेश से मिलता था कि भाई यह बताओ आज कितनी ल से आए हैं जिले भर से फिर उन लाशों के बीच में जाकर के मैं यह पूछता था कि बताओ कौन सी हत्या की है कौन सी दुर्घटना की है कौन सी सुसाइड की है वह दोनों ही पोस्टमार्टम में पोस्टमार्टम करने वाले सुपरमैन थे डॉक्टर लोग तो दूर खड़े हो गए देखते थे खाली मौसम पूछते थे रोज यह कौन से एक्सीडेंट है इसमें क्या है यह सुसाइड है यह हत्या है तो क्या है उन लाशों का विश्लेषण करते थे फिर उनमें से किसी एक बढ़िया लाश की कहानी ढूंढते थे जिसके घर वाले वहां आकर बिलक बिलक के रोते थे वह वही कहानी बताते थे कि हाय बेटा ऐसा ना करते तो ऐसा ना होता ऐसा न करते तो ऐसा ना होता उसके पीछे छुपी कहानी को हम लोग चुपचाप पहले सुनते फिर आगे की जानकारी उनसे लेते थे बाकी कहानी फिर वहां के सुपर बताते हैं डॉक्टरों से उसके अंदर शरीर के अंदर की चीज मिलती थी लेकिन वास्तविकता में इंसान तो मर चुका होता है वह तो कुछ कहने आता नहीं है इस धरती पर जो उसके साथ के लोग हुए या अज्ञात हुआ तो उसकी कहानी उसी के साथ चली जाती थी हम लोगों की मजबूरी थी खासतौर पर हम क्राइम रिपोर्टर की कि हम को शाम को अखबार में जाकर के एक कहानी अपनी अवश्य देनी पड़ती और वह कहानी हमको मेडिकल कॉलेज के पोस्टमार्टम से मिलती थी या वहां की इमरजेंसी से मिलती थी पोस्मार्टम में अच्छी कहानियां मिल जाती थी किसी भी मोर्चे के पीछे किसी भी मरने वाले के पीछे कोई न कोई एक सुंदर कहानी होती मरने वाला एक कहानी छोड़ जाता था हम लोगों को शाम के लिए नौकरी पक्की करने के लिए कहानी पोस्टमार्टम घर से मिल जाती थी अच्छा सुसाइड अच्छा मर्डर अच्छा एक्सीडेंट और उसके पीछे की कहानी हम लोग वहीं तैयार कर लेते थे वहीं बैठकर हम लोग चाय पीते थे सुबह की और वहां के कर्मचारियों से ऐसी दोस्ती हो गई थी जैसे लगता था कि हमारा उनका जन्म जन्म का साथ है जहां आप बैठ भी नहीं सकते और अगर आप चले जाएं तो आप ज्यादा देर वहां रुक भी नहीं सकते हम लोगों का प्रातः वहीं से शुरू होता है और वहां से कहानी पहले एक लेकर के हम लोग तब आगे बढ़ते हैं अगर कोई बड़ी घटना ना हो अगर तो हम लोग उसके बाद मेडिकल कॉलेज बलरामपुर के आपातकाल में चिकित्सा में जाते थे जहां घायल लोग पहुंचते थे वहां कुछ दूर से थे वहां भी वही चीख-पुकार हाय हत्या उसके बाद वहां से फिर हम लोग जाते थे और कंट्रोल रूम ताजी खबरों के लिए क्योंकि अगर दिन भर में कोई ऐसी घटना घटी कोई ऐसी बात ना हुई तो ही हमको सायंकाल इसके लिए एक सुंदर खबर तैयार रखनी पड़ती थी जो आज लोग नहीं करते मुर्दाघर से लोग डरते हैं लेकिन यह नहीं मालूम है सबसे बढ़िया कहानी यह मोड़ से ही देखे जाते थे इनके पीछे की ही कहानी बहुत पढ़ी जाती थी हम लोग जब दिनभर ताजी खबरें निपटा सकते हैं तो उसके बाद अपने जीवन से सुबह पोस्टमार्टम की वह खबर निकालते थे और उसको लिखने बैठ जाते थे क्योंकि पोस्टमार्टम में जो भी व्यक्ति किसी अपने संबंधी की मृत्यु पर आता था वह निश्चित तौर पर रो-रोकर सही बातें बताता था कहता था जी हां ऐसा न करते तो ऐसा ना होता तो वह जो कहानी मिलती थी उसको जनता बड़े चाव से पढ़ती थी क्योंकि वह हकीकत होती थी और वैसे भी अगर उसमें कुछ नमक मत लगा दिया जाए तो मरने वाला तो वापस आता नहीं ना वह कोई स्पष्टीकरण देता है हम लोग वहां से कहानी खोज लेते थे आप सोचे एक क्राइम रिपोर्टर की स्थिति क्या होती है उसको कहां जाना पड़ता है और एक राजनीतिक रिपोर्टर संस्कृत इन लोगों का फल क्या होता है नेता के पास जाते हैं आराम से बैठकर चाय नाश्ता करते हैं उनसे बात करते हैं जो चाहे करवा लेते हैं लेकिन एक क्राइम रिपोर्टर मोड़ दो घायलों और अजीबोगरीब स्थितियों में जाता है जहां उसको हर समय खतरे के अलावा और कुछ नहीं मिलता है और ऐसी जिंदगी बीस पच्चीस साल काटना मामूली नहीं होता है मैं ऑडी शुक्ला लगभग 25 साल 30 साल लगातार रोज पोस्टमार्टम स्थल पर पहली चाय पीता था जहां पर आप 15 मिनट भी नहीं रुक सकते एक क्राइम रिपोर्टर की जिंदगी का एक यही सबसे बड़ा दर्द है क्यों हमेशा हर जगह दर्द की जगह पर जाएगा तकलीफ की जगह जहां रोना पीटना मचा होता है और उसी बीच में उसको जल्दी से जल्दी कहानी की तलाश और रोते बिलखते लोगों के बीच से निकालने होती है जो एक सबसे कठिन काम होता है हंसते खेलते लोगों के बीच में कहानी बनाना निकालना तो बहुत आसान है लेकिन रोते बिलखते लोगों के बीच से एक अखबार के लिए कहानी निकालना जो अखबार रात को बन जाए सुबह के बाजार में आ जाना है वह बहुत कठिन काम होता है लेकिन वो काम हम लोग करते करते आदत हो गई थी क्राइम रिपोर्टर का एक दर्द होता है मैं अधिक शुक्ला आपको दर्द के बारे में विस्तार से बताता रहूंगा
पोस्टमार्टम घर रोज जाकर मुर्दों से खेलना बहुत मजा आता था