दोस्तों आरडी शुक्ला की जुबानी सुनिए पिछले विश्व 25 वर्षों में किस तरह खबर के कारखानों का अपराधीकरण हुआ आपको ज्ञात होगा पहले ज्ञानी ध्यानी लोग खबर के कारखाने चलाया करते थे बड़े बड़े सेठ उसके मालिक होते थे और एक से एक काबिल लेकिन शरीफ किलो पढ़े-लिखे लोग खबर के कारखाने चलाया करते थे उनके नाम आप सब जानते हैं लोग याद करते हैं वह कभी भी खबरों से कोई समझौता नहीं करते थे चाहे उसके बदले में उनको करोड़ों रुपया अरबों रुपया दे दिया जाए मैं भी काम करता था लेकिन उस समय के संपादक पत्रकार ₹1 लेना भी गुनाह समझते थे साइकिल पर चलते थे धीरे धीरे अगर वह पहुंचे तो स्कूटर तक पहुंच गए और बड़े बड़े अखबारों में काम करते थे स्वतंत्र भारत नवभारत टाइम्स टाइम्स ऑफ इंडिया और इससे बड़े बड़े अखबारों में लेकिन उनके पास चार पहिया गाड़ी नहीं होती थी साइकिल ओं से चलते मैंने संपादकों को देखा लेकिन आज क्या हो रहा है जब अपराधियों ने देखा कि सब कुछ तो यह अखबार कंट्रोल कर रहा है तो मीडिया में हाथ मारो आज हालत यह है अपराधियों ने या तो अखबार खरीद लिए चैनल खरीद लिए या तो फिर उसमें इतना पैसा लगा दिया कि उसके मालिक बन बैठे और उसके बाद शुरू हो गया खबर के कारखानों का अपराधीकरण अपराधियों के पक्ष में खबरें लिखी जाने लगी जो सच्चे ईमानदार भ्रष्टाचारियों के खिलाफ लड़ने वाले पत्रकार थे उनको इन कारखानों से निकाल कर बाहर किया गया वह सड़क पर आ गए रखे वह जाने लगे जो अपराधियों को पनाह दे सकते थे अपराधियों के पक्ष में खबरें लिख सकते थे बस चंद बड़े अखबारों को छोड़ दीजिए चंद बड़े चैनलों को छोड़ दीजिए वहां आज भी इमानदारी मौजूद है सच्ची खबरें वह दिखाते हैं और लिखते हैं उनमें से चाहे दैनिक जागरण हो हिंदुस्तान हो अमर उजाला हो टाइम्स ऑफ इंडिया हो नवभारत टाइम हो या खबरिया चैनलों में आज तक इत्यादि कुछ चैनल जो इमानदारी की साख पर मौजूद आज भी काम कर रहे हैं बाकी खबरिया चैनल और अखबार सिर्फ और सिर्फ अपराधियों और नेताओं ने लगा रखे हैं उनके आदमी उसमें है वे जब भ्रष्टाचार या अपराधिक किसी मामले में फंसते हैं सबवे बचाने का काम करते हैं तो आप सोचें किस तरह अपराधियों ने छोटे बड़े सभी अखबारों में अपने आदमी कहीं ना कहीं से डाल रखे हैं जो वक्त बेवक्त मुसीबत में इन भ्रष्ट नेताओं अपराधियों बेईमानों को सपोर्ट करते हैं आज सबसे बड़ी परेशानी है कि आज हमारी पुलिस जिसके पास इतना पैसा नहीं है सुबह चैनल लगा ले या वह इन अपराधियों के अखबार ई नेटवर्क को तोड़ सके वह स्वयं टूटती जा रही है आप सोचिए उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था इस समय सबसे बेहतर है लेकिन उसको किस तरह यह अपराधियों से जुड़े पत्रकार और उनके ये खबरिया चैनल और अखबार बिगड़े हुए हैं उसका कारण है क्या आप सोच सकते हैं कि 75 जिलों में उत्तर प्रदेश में जो थाने हैं वह 24 घंटे बंद रहते हैं क्या वहां कोई गुड वर्क होता ही नहीं है क्या वहां कोई कार ही नहीं करती पुलिस लेकिन दुख होता है यह खबरिया चैनल पुलिस के गुड वर्क को नहीं प्रकाशित करते हैं और ना ही दिखाते हैं यह पुलिस की विपरीत होने वाली खबरों को इस तरह दिखाते हैं इससे पूरा पुलिस महकमा निकम्मा हो गया है कहीं कोई काम नहीं कर रहा है और पुलिस का अच्छा काम सब बेकार कर देते हैं हमारी सरकार कुछ नहीं कर पा रही है क्योंकि पुलिस और सरकार के पास इतना पैसा नहीं है जितना कि इन अपराधियों और इनके चैनल और इनके अखबारों का के नेटवर्क का मामला है यह लोग जबरन पुलिस के द्वारा किए जाने वाले अच्छे कार्यों को ऐसा पलट देते हैं लगता है कि पुलिस प्रदेश में कुछ नहीं कर रही है सिर्फ वह जनता का दमन कर रही है यह बिल्कुल गलत है मैंने भी पूरे 30 साल में देखा कि किस तरह पुलिस के गुड वर्क अपराधी अपने पैसे से दबा देते हैं पुलिस की भी कमी है सरकार की भी कमी है कि वह अपने सरकारी प्रवक्ताओं के द्वारा खबरें प्रकाशित करवाते हैं वे बेचारे सरकारी प्रवक्ता और पीआरओ इन खबरिया चैनलों और अकबर के बीच में बैठे अपराधियों के लोगों से सीधा टकराव नहीं ले सकते उनकी नौकरी का सवाल है और हमारी सरकार अब यह नहीं कर पाती कि ऐसे लोगों को प्रवक्ता बनाया जाए जो स्वतंत्र और जनता के हो या भूतपूर्व हो जो इन अपराधियों और भ्रष्टाचारियों के नेटवर्क से ना डरते हुए यह फर्जी खबरिया और अखबार की खबरों को खुला खंडन करें उस पर तथ्य दें आज हमारे प्रदेश की कानून व्यवस्था पूर्ण स्वस्थ है और ठीक है लेकिन उसको खराब बताने पर लोग तुले हुए हैं उसका भी कारण से इन खबर के कारखानों में अपराधियों का घोषणा है भ्रष्टाचारियों का घोषणा है बेईमानों का पैसा पानी की तरह बह रहा है हमारी पुलिस के पास पैसा इतना नहीं है उसका कोई चैनल नहीं है उसका कोई अखबार नहीं है वह नौकरी कर रही है ज्यादा बोल भी नहीं सकती बस यही मजबूरी उस को बदनाम कर रही है ऐसा नहीं है कि हमारे प्रदेश के 75 जिलों में जो थाने हैं वह काम नहीं कर रहे हैं या वह गुड वर्क नहीं कर रहे हैं या वह अपराधियों की पकड़ धकड़ नहीं करते हैं उन सब चीजों को यह अपराधियों के चैनल और अखबार सब दबा देते हैं और सिर्फ वह खबर देते हैं जो पुलिस के खिलाफ होती हैं सरकार को सोचना पड़ेगा हमारे योगी बाबा को सोचना पड़ेगा कि वह कम से कम या तो अपना चैनल पुलिस का भी शुरू करें और नहीं तो स्वतंत्र निर्दल प्रवक्ताओं को स्थान दें जॉइन बेईमान भ्रष्टाचारी अपराधिक प्रवृति के लोगों के चैनल और अखबार की झूठी खबरों जो पुलिस के मनोबल को तोड़ती हैं उनके प्रसारण का खुला खंडन निडर होकर कर सके अभी ऐसा नहीं हो रहा है लेकिन शासन को करना चाहिए सरकारी प्रवक्ता नौकरी में रहते हुए इतने बड़े अपराधियों और नेताओं के नेटवर्क को नहीं तोड़ सकते जारी रहेगा डी शुक्ला का यह बयान हमारा वेबसाइट पढ़ते रहे
खबर के कारखानों का अपराधीकरण