तमाम पुलिसवालों की हत्या करने वाले दुर्दांत खूंखार डाकू छविराम उर्फ़ नेताजी को कैसे लगाया पुलिस ने ठिकाने नहीं मानी सरकार की यह बात कि उसको जिंदा आत्मसमर्पण करवा दो पूर्व डीजीपी करमवीर सिंह ने कहां हम इसको माला पहनकर आत्मसमर्पण नहीं करने देंगे और सरकार को झुका दिया कहानी सुनिए आरडी शुक्ला की कलम से विकास उसके सामने कुछ नहीं था

दोस्तों आज वह कहानी मैं आपको सुना रहा हूं जिसके बारे में आप ना जानते होंगे और ना ही ज्यादा सुना होगा यह कहानी सन 1980 के दशक की है जब मेरे पत्रकारिता की शुरुआत थी मैं अपने प्रेस कार्यालय में था रात करीब 8:00  बजे अचानक मुझको संपादक स्वर्गीय वीरेंद्र सिंह जी ने बुलाया और बताया कल सुबह दुर्दांत दस्यु जिसने तमाम पुलिसवालों की हत्या कर रखी थी खूंखार था मैनपुरी एटा फर्रुखाबाद जमुना के बीहड़ों में उसके नाम से लोग बहुत डरते थे वह मैनपुरी में आत्मसमर्पण करेगा और आप तत्काल वहां के लिए रवाना हो जाएं मैं बहुत ज्यादा तो नहीं जानता था उसके बारे में लेकिन जब संपादक का आदेश हुआ कि तत्काल आप जाओ मैंने  अपने फोटोग्राफर आरके को बुलाया उसके बाद एक जीप का इंतजाम किया जीप का इंतजाम करने के बाद हमारे  प्रेस के कुछ साथी भी हमारे साथ चलने को तैयार हो गए हमारे एक वरिष्ठ पत्रकार साथी मनोज तिवारी जी भी जीप में बैठ गए ओम प्रकाश मिश्रा और विजय को भी मैंने साथ ले लिया मैं तो ड्यूटी करने जा रहा था यह लोग  उसको  आत्मसमर्पण करते देखना चाहते थे हमारे यहां टेलीप्रिंटर पर यह समाचार आया था कि कल सुबह छविराम उर्फ़ नेताजी सार्वजनिक रूप से पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करेगा उस समय कुछ नेतागण भी हाजिर होंगे जिसमें एक लखीमपुर खीरी के विधायक केसरवानी जो उसके आत्मसमर्पण के प्रयास में लगे हुए थे और उन्होंने सरकार को राजी किया था वह भी उपस्थित रहेंगे उस समय तक इस डाकू ने पता नहीं कितने पुलिसवालों की हत्या की थी यही नहीं उसने एटा जिले के अलीगंज थाने में घुसकर पुलिसवालों की हत्या की और उनसे हथियार लूट लिए थे इसके अलावा तमाम पीएसी वालों को भी मार रखा था और उनसे अत्याधुनिक हथियार छीन लिए थे  उसके साथी अनार सिंह पोथी भूरा सहित सैकड़ों लोगों का  गिरोह था जब उसका उत्तर प्रदेश में मुठभेड़ों का सिलसिला शुरू हुआ तो वह बकायदा पीएसी से मुठभेड़ करता था लंबे समय तक गोलियां चलती थी एक तरीके से वह क्षेत्र का राजा हो गया था उससे कोई टकराने की हिम्मत नहीं करता था इसी बीच प्रदेश में मुठभेड़ों का दौर शुरू हुआ यह ब्यूरो से भागकर ग्वालियर शहर में जाकर छुप गया था एक मेजर बनके जब प्रदेश में मामला ठंडा हुआ तो उसने प्रदेश के कांग्रेसी नेताओं को साध कर आत्मसमर्पण करने की सोची और उसी सिलसिले में मैनपुरी में हो पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करना चाहता था यह वार्ता बहुत समय से चल रही थी लेकिन अचानक यह खबर आई कल ही आत्म समर्पण करेगा नेता और पुलिस के बीच स्वागत किया जाएगा उसका जब पैसे हमको ड्यूटी दी गई तो हमारे कुछ साथी भी हमेशा जीत में बैठ गए और हम लोग रात को ही 1:00 बजे मैनपुरी के लिए निकल पड़े सबको एक चीज मालूम थी कि वहां कोई खतरा नहीं है पुलिस होगी नेता होंगे और आत्मसमर्पण का कार्यक्रम होगा सभी लोग यही दृश्य देखने के लिए उतावले  थे हम लोग निश्चिंत होकर मैनपुरी की ओर निकल लिए कि वहां पुलिस तो होगी इसलिए कोई चिंता की बात नहीं प्रातः काल हम लोग मैनपुरी पहुंचे वहां बहुत आश्चर्य हुआ यह देख कर कि वहां कोई हलचल नहीं है किसी भी प्रकार की पुलिस की कोई गतिविधि नहीं है हम लोग मैनपुरी के तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कर्मवीर सिंह के यहां गए और पुलिस के कई दफ्तरों में गए हम लोगों ने जानना चाहा कि आखिर वरदान डकैत छविराम कहां पर आत्मसमर्पण करेगा पुलिस वाले कुछ बोलने को तैयार नहीं थे वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के यहां भी सन्नाटा छाया था किसी तरह हम सब लोगों ने सुराग रस्सी करके यह पता किया कि आखिर यह कार्यक्रम कहां हो रहा है तो हम लोगों को पता चला की यहां किसी का कोई सा आत्मसमर्पण नहीं होना उसका कारण पता चला कि इस  सरकार के लाख कहने के बावजूद कर्मवीर सिंह ने छविराम को माला पहनाकर आत्मसमर्पण कराने से पूरी तरह से मना कर दिया उनका कहना था जिसने हमारी इतनी पुलिस मार रखी है पुलिसवालों की हत्या करके हथियार लूट रखे हैं हम उसको जिंदा नहीं पकड़ेंगे जब उत्तर प्रदेश पुलिस ने छविराम को आत्मसमर्पण कल आने से मना कर दिया तो सरकार ने भी पलटी खाई वह जान गई पुलिस विद्रोह पर है तब उसने अपना रुख पलट दिया और पुलिस से कहा तो इसको तुम कब तक मार सकते हो या पकड़ सकते हो क्योंकि उसका गिरोह बहुत बड़ा था पूरा क्षेत्र उस को समर्थन देता था यही नहीं यादव बहुल क्षेत्र में वह निसंकोच आराम से घूमता था हथियार लेकर बाकी उसके गैंग के लोग हर गांव में थे जहां से वह निकलता था गांव के लोग हथियार लेकर उसके साथ हो जाते थे अगर पुलिस से मुठभेड़ होती थी सब साथ गोली चला चलाकर मुठभेड़ करते थे पुलिस और पीएसी से क्योंकि उधर क्षेत्र में उसका बहुत  वर्चस्व था इसी कारण उसको नेतागण आत्मसमर्पण कराना चाहते थे और उसको नेता बनने का मौका देना चाहते थे जब हम लोगों को मैनपुरी में कुछ नहीं मिला सन्नाटा दिखा बाद में काफी घूमने के बाद पता चला कि छविराम अपने गैंग के साथ अपने  हर नागर पुर मैं 1 सप्ताह से यज्ञ कर रहा है मैनपुरी से करीब 10 15 किलोमीटर दूर इस गांव में वह अपने गिरोह के साथ 1 सप्ताह से मौजूद था हम लोगों के मन में आया कि जब हमारे पास जीप है ड्यूटी भी करनी है तो क्यों ना उसके गांव चला जाए तुरंत  जीप के ड्राइवर से उसके गांव चलने को कहा पूरे रास्ते सन्नाटा दिखाई दिया जब हम लोग उसके गांव के करीब पहुंचे तो दूर से हम लोगों को लाखों लोगों की भीड़ दिखाई दी आसपास के लोगों से जब पूछा यह  इतनी भीड़ क्या है तो लोगों ने बताया कि छविराम नेता जी आए हुए हैं वह यज्ञ कर रहे हैं हम लोग उनके दर्शन करने जा रहे हैं हम लोग आश्चर्य में पड़ गए खैर पत्रकार थे उस भीड़ से 1 किलोमीटर के करीब हम लोग पहुंचे थे अचानक हम लोग गाड़ी से उतरते बस इसी बीच उस भीड़ की तरफ से भयंकर गोलीबारी शुरू हो गई एलएमजी एसएलआर  और बंदूकों से हम लोगों के ऊपर जबरदस्त फायरिंग शुरू हो गई किसी तरह हम लोग खेतों में लेट कर अपनी जान की रक्षा करने लगे यही नहीं हमारे ड्राइवर मैं तो खेत के पानी में अपने को डुबोकर जान बचाई गोलाबारी करीब आधे घंटे तक चलती रही हम लोग वही खेतों में जान बचाकर पड़े रहे हमारे साथी जो गए थे वह वहां समारोह देखने गए थे आत्मसमर्पण का वह इतना ज्यादा घबरा गए कि उनकी हालत देखने लायक थी उस समय ड्यूटी पर सिर्फ मैं और मेरा फोटोग्राफर था बाकी लोग तो तमाशा देखने गए थे अचानक इस गोलाबारी ने सबके होश फाख्ता कर दिए वह जान के लाले  लग गए जब गोलाबारी बंद हुई तब थोड़ी देर बाद छविराम के साथ के लोग हम लोगों के पास आए परिचय पूछा हम लोगों ने बताया कि हम लोग प्रेस वाले हैं स्वतंत्र भारत अखबार से आए हैं यह सोच कर कि यहां आत्मसमर्पण होना है छविराम जी नेता जी से मिलने का मौका देखकर हम लोग आए थे मिलने अचानक इस गोलाबारी ने हम लोगों को बहुत दहशत में डाल दिया है उन्होंने हमको वहीं रुकने को कहा और जाकर छविराम नेता जी से पूछताछ की उनको हम लोगों के बारे में बताया कि यह लोक प्रेस के हैं तब काफी देर बाद हम लोगों को हथियारों के घेरे में लेकर लोग छविराम के पास तक पहुंचे वहां पर जो दृश्य देखा है हम लोगों ने वह शायद शोले फिल्म या डकैतों से संबंधित जो फिल्में आती रहे उसमें जो दृश्य देखते थे ठीक वैसा ही दिखाई दिया सभी डाकू खाकी वर्दी पहने हुए थे बहुत बड़ी संख्या में थे हथियारबंद लोग सभी लोगों ने ऐसी घेराबंदी कर रखी थी वहां तक कोई पहुंच ही नहीं सकता था वहीं पर एक ट्यूबवेल बना हुआ था जिसके ऊपर एक डाकू एलएमजी लेकर बैठा हुआ था बाद में पता चला था यह एलएमजी लाइट मशीन गन चलाने वाला एक शातिर पीएसी का भगोड़ा था यह हथियार पीएसी वालों से मारकर  डाकुओं ने छीन लिया था यज्ञ स्थल पर काफी पूजा-पाठ हुई थी सो साफ दिख रहा था छविराम के चारों ओर पेड़ों पर आसपास छोटी उम्र के लड़के बंदूक लेकर बैठे थे जैसा कि आपने फिल्मों में देखा होगा सबसे बड़ा काम  इन डाकुओं ने यह किया हमारा कैमरा अपने पास रख लिया और सब की तलाशी ली हम लोगों ने इस गोलाबारी की शिकायत जब छविराम नेता जी से  की तब छविराम ने अपने गैंग के शातिर भूरा को बुलाकर  उसको डांटा और मारा और कहा यह क्यों गोली चली भूरा  के पास उस समय  चाइनीस चाइनीस राइफल थी छविराम ने हम लोगों से कहा अब हम लोग आत्मसमर्पण नहीं करेंगे सरकार से हमारी वार्ता टूट गई है आप लोगों की  जीप को पुलिस की जीप हम लोगों ने समझ लिया था अब किसी भी समय पुलिस हम लोगों पर हमला कर सकती हैं बस यही सोच कर गिरोह के लोगों ने आपको पुलिसवाला समझ लिया और गोली चला  दी बहुत ही सज्जनता से नेता जी ने हम लोगों का स्वागत किया कैमरा पहले ही रखवा लिया गया था फोटो खींच नहीं सकते थे उसने इंटरव्यू देने से इनकार कर दिया हम लोग भी हल्की फुल्की बातचीत करके वहां से निकलना ही बेहतर समझा छविराम ने बताया कि अब उनकी सरकार से वार्ता विफल हो चुकी है और वह  बीहड़ कर वहां से  हम लोग  जीप की ओर वापस चल दिए हमारी  जीप लगभग 2 किलोमीटर दूरी पर खड़ी थी 1 किलोमीटर चलने के बाद हम लोगों को फोटोग्राफी का कैमरा वापस मिला हम लोगों ने लोगों से दुआ सलाम करके आगे बढ़ गए अब सवाल ये था कि हमको वहां मिला क्या जो हम प्रेस में जाकर कुछ खबर देते दिमाग इस बात  को लेकर परेशान था उसी समय मैंने और मेरे फोटोग्राफर आरके ने एक योजना रास्ते में बनाई मैंने आरके को कैमरे के साथ तुरंत जीप में जाकर पीछे लेट जाने को कहा वह छोट और नाट्य था हिम्मती  भी बहुत था वह भाग कर गया और जीप में पीछे लेट गया  उसके पास दूर से फोटो खींचने के लिए अस्त्र मौजूद थे हमारा उसका  यह कार्यक्रम तय हुआ था  की जीप के चालू होते ही वह छविराम गिरोह की फोटो खींचना शुरू कर देगा हुआ भी यही जब हम लोगों ने अपने को सुरक्षित समझ  फोटोग्राफी शुरू करवा दी और वहां से भाग निकले शुरू में गोलियां चलने के कारण सभी लोग दहशत में आ गए थे काफी दूर आगे जाने के बाद हमारे वरिष्ठ पत्रकार साथी मनोज तिवारी की तबीयत खराब हो गई जीप की भी हालत कुछ खराब हो गई किसी तरह हम लोग घबराकर मैनपुरी पहुंचे पूरी रात यात्रा करके यहां आए थे वह भी खतरे में पड़ गए थे सो मैनपुरी में हम लोगों ने थोड़ा बहुत नाश्ता किया और वहीं पर अपने कैमरे की रील धुलने के लिए दे दी उन दिनों ना मोबाइल था ना ही सीधा फोन होता था  सिर्फ ट्रंक बुकिंग होती  कि वह भ थी वह भी फिक्स फोन पर वहां थोड़ा आराम किया बस दिल में एक ही तमन्ना थी जान खतरे में डालकर फोटो खींची है कुछ ठीक   फोटो  आ जाएं जिससे यहां आना हमारा सफल हो जाए और नौकरी भी पक्की हो जाए हम लोगों को अंदाजा नहीं था के किलोमीटर दूर से जल्दबाजी में खींची गई फोटो ठीक भी आ सकती है लेकिन हमारा भाग्य अच्छा था भीड़ छविराम की दो फोटो कुछ कुछ ठीक आ गई बहुत खुशी हुई लखनऊ फोन पर बताया अपने संपादक को वह भी खुश हुए बाद में जब मैनपुरी में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से बात हुई कर्मवीर सिंह जी से तब उन्होंने सूत्रों को बताया केस छविराम डाकू ने हमारे बहुत पुलिस वालों को मारा है सरकार ने बहुत कोशिश की किस का आत्मसमर्पण करवा दिया जाए लेकिन पुलिस ने और खासकर उत्तर प्रदेश पुलिस ने उसको जिंदा समर्पण करवाने से इनकार कर साफ इनकार कर दिया तब सरकार ने छविराम को बीहड़ में चले जाने के लिए छूट देने का काम किया उस समय कांग्रेस की सरकार थी आत्मसमर्पण करवाने वाले लखीमपुर खीरी के एक विधायक थे जब कर्मवीर सिंह ने आत्मसमर्पण नहीं करवाया तो आत्मसमर्पण करवाने वाले नेता कर्मवीर सिंह से नाराज हो गए  और उनसे कहां गया क्या आप कितने दिन में इस डाकू का खात्मा कर सकते हैं या गिरफ्तार कर सकते हैं कर्मवीर सिंह ने सिर्फ एक माह का टाइम मांगा नेताओं ने गुस्से में कर्मवीर सिंह को एक माह का टाइम दे दिया नेताओं की यह सोच थी कि पुलिस जब पांचों साल उसका कुछ नहीं कर पाई तो 1 महीने में क्या कर लेगी नेता जानते थे की पुलिस वह भी सन 80 के दशक में जब कोई इन नेताजी के खिलाफ विधानसभा में विधानसभा में विधानसभा में बोलने को तैयार नहीं होता था पुलिस असफल  हो जाएगी और फिर हम नेता छविराम को आत्मसमर्पण करवा देंगे खैर हम लोग वहां से सीधा लखनऊ की ओर निकल पड़े उस समय के वाहन भी ऐसे ही  खटारा था हम लोग किसी तरह दो गेयर टूटने के बाद लखनऊ पहुंचे दूसरे दिन सुबह दिन में आराम किया सायंकाल कार्यालय पहुंचे पता चला विधानसभा में तत्कालीन गृहमंत्री स्वर्गीय स्वरूपरानी बख्शी ने बताया या यूं कहिए झूठ बोला  छविराम मैनपुरी में नहीं आया था वह यह बताना भूल गए छविराम आया था लेकिन पुलिस ने उसे आत्मसमर्पण नहीं होने दिया एक तरफ गृहमंत्री का झूठ तब हमारी उस फोटो  स्वतंत्र भारत अखबार में छपी यह खड़ा है भीड़ में छविराम और यज्ञ कर रहा है 1 सप्ताह से अपने गांव में पुलिस को यह हिदायत दे दी गई थी कि उससे कतई ना बोले हम लोगों की  जान पर खेलकर की गई मेहनत   ने नेताओं की पोल खोल दी हमारे संपादक का हमको मैनपुरी भेजने का मकसद यही था और वह सफल रहा है हम लोगों पर चली गोलियां देशभर के अखबारों की खबर बन गई खैर बात आई गई हो गई यहां आकर और खबरों में लग गए अचानक एक रात पुलिस महानिदेशक कार्यालय से वहां के पीआरओ कार्यालय के गौर साहब रात्रि में मेरे घर पहुंचे ओम उसे तत्काल मैनपुरी चलने को कहा उन्होंने बताया कि छविराम गिरोह के काफी सदस्य पुलिस मुठभेड़ में मार दिए गए हैं आप उनको करीब से पहचानते हैं आप मिल चुके हैं आपको चलकर मैनपुरी में उन्हें पहचानना है और अपनी गाड़ी में बैठा कर मुझे लेकर मैनपुरी पहुंच गए वहां पुलिस लाइन के गैराज में जब मैंने छविराम सहित लगभग एक दर्जन डकैतों की लाशें देखी सभी को पहचान गया खास तौर पर सोने के कुंडल पहले जब भूरा डाकू को देखा तो बहुत अच्छा लगा क्योंकि हम लोगों पर गोली चलाने वाला वही था इन डकैतों की लाशों को कर्मवीर सिंह ने सार्वजनिक रूप से बाजार में टंडवा भी दी थी जनता को देखने के लिए कर्मवीर सिंह द्वारा सरकार को दिए गए 1 माह के टाइम का केवल एक दिन बचा था और पुलिस ने इन डकैतों का काम तमाम कर दिया आश्चर्य तो इन डकैतों की लाशों को देखकर हुआ पूरी तरह नीली पड़ी हुई थी और यूं कहिए काली हो गई थी ऐसा लग रहा था इनको गोलियां मारने से पहले जहर दिया गया है उसके बाद हम लोगों को मैनपुरी के उस थाने ले जाया गया जहां पूरा गिरोह एक नाले के किनारे गोलियों से भून डाला गया था जब थाने में गए वहां एक बोरा चले हुए कारतूस दिखाए गए यह थाना घिरोर था उसी समय वहां पर ट्रेनिंग कर रहे आईपीएस भी पहुंच गए थे उनको मुठभेड़ दिखाई जा रही थी कैसे हुई आज आप लोग विकास दुबे के मुठभेड़ को या 5 बदमाशों की मुठभेड़ मैं मारे जाने पर इतना हंगामा देख रहे हैं उसका कारण है तब इतना मीडिया का काम धाम नहीं था नाही अखबार वाले अपराधियों और डकैतों से कोई संपर्क रखते थे आज हालत यह है सोशल मीडिया चला रहा है प्रिंट मीडिया चला रहा है इलेक्ट्रॉनिक मीडिया लगातार दिखा रहा है अपना टीआरपी बढ़ा रहा है विकास कांड को दिखा कर उस समय हम लोगों का एक फर्ज होता था अपराधी डकैत या जो भी पुलिस परिवार करें या जनता पर करें उसके मारे जाने पर पुलिस का हम लोग पक्ष लेते थे आज अत्याधुनिक तकनीक के बीच चल रहे मीडिया मैं अपना रूप बदल दिया है उसको पैसा चाहिए और पैसा मिल सकता है अपराधियों से ऐसी हालत में पुलिसवालों की हत्या करने वाले लोगों को भी बचाने की कोशिश होने लगती है आपको यह सुनक आपको यह सुनकर आश्चर्य होगा की छविराम पुलिस के हाथों मारा कैसे गया किस्सा इस प्रकार है जब छविराम मैनपुरी में आया था यज्ञ करने और आत्मसमर्पण करने जब अपने गिरोह के साथ आया   बीहड़ से  निकल कर उसी समय पुलिस ने अपने भगोड़े पीएसी के साथी मथुरा सिंह को तोड़ लिया और उसके मार्फत एक दावत में गए छविराम गिरोह कोभोजन के साथ जहर दिलवा दीया जब पूरा गिरोह जहर से मर गया तब नाले के पास लाकर उनकी लाशों पर जबरदस्त गोलियां चलाकर मुठभेड़ दिखा दीया इस डाकू ने काफी पुलिसवालों की हत्या की थी इस कारण इस मुठभेड़ पर हर किसी को शक था कि उस को जहर देकर मारा गया है साफ जाहिर था यह काम मथुरा सिंह से ही पुलिस ने करवाया यदा-कदा कुछ खबरें भी छपी लेकिन आज की तरह हंगामा नहीं मचा और ना आज की तरह पहले जांच पड़ताल हुआ करती थ थी ना ही कोई मानव अधिकार था ना ही कोई पूछताछ होती अपराधी का खात्मा ही सब पसंद  करते थे अखबार वाले थे वह भी ईमानदार थे पुलिस वाले भी अपने कर्तव्य के प्रति बहुत ईमानदार हुआ करते थे यह छविराम नेता जी कि वह हैसियत थी किया जिस गांव दराज से निकलता था अपने गैंग के साथ गांव वाले ही उसको आगे तक हथियारों से लैस होकर छोड़ कर आते थे सुरक्षित यहां तक की बड़े-बड़े नेता भी उसके चरण लेकर उसके आगे पीछे घूमते थे  आज अगर वह जिंदा होता और नेताओं की चल गई होती उसने पुलिस की हत्या एना की होती तो वह यादव बिरादरी का सबसे बड़ा नेता होता यहां तक मुलायम सिंह यादव के गांव में जब भी आता था उसको सुरक्षित गांव के बाहर तक छोड़ मैं जाते थे एक बार तो छविराम की पीएसी से मुठभेड़ हो रही थी अचानक पीएसी के कारतूस खत्म हो गए पी एस सी वालों ने गांव वालों से सड़क पर खड़ी अपने खबर करने के लिए कहां उल्टा यह गांव वाले डकैतों को जाकर बताएं कि पीएसी के कारतूस खत्म हो गए हैं इस गिरोह ने उन पीएसी वालों को घेरकर गोलियों से भून डाल क्योंकि उनके पास कारतूस नहीं बचे थे हथियार भी लूट ले गए अब आप सोचें ऐसे आदमी का आत्मसमर्पण पुलिस कैसे करवा सकती मुठभेड़ भी उसने उचित नहीं समझा छविराम गिरोह बहुत बड़ा था उसने पुलिस के बहुत हथियार लूट रखे थे वास्तविक मुठभेड़ में बहुत पुलिस वाले मारे जाते शो पुलिस ने रणनीति के तहत जहर देकर अगर उसको के गिरोह को समाप्त कर दिया तो क्या गलत किया आज प्रदेश की योगी सरकार में अगर 8 पुलिस वालों की निर्मम हत्या करने वाले विकास और उसके पांच साथियों को मुठभेड़ में मार दिया गया तो इतनी हाय तौबा क्यों हो रही है आगे जारी रहेगी कहानी