पिता को मां के दरबार में समर्पित कर आया और फिर क्या हुआ मेरी जिंदगी का

मैं आरडी शुक्ला वह सच्ची कहानी सुना रहा हूं जो शायद ही कभी आपने सुनी हो यह सत्य है धर्म कहां से शुरू होता है इसकी गाथा हमने बहुत बचपन में समझ ली इसी कारण सत्य को बहुत करीब से जान गया यह बात है सन 1970 के करीब की मैं उस समय इंटर का छात्र था और मेरा एक भाई विष्णु दत्त शुक्ला हम से 1 वर्ष बड़ा था वह जुबली कॉलेज में पढ़ता था मैं क्रिश्चियन कॉलेज में मेरे पिताजी स्वर्गी आचार्य शिव दत्त शुक्ला राजकीय आयुर्वेद कॉलेज लखनऊ के प्रधानाचार्य और लखनऊ विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता थे हमारे पिताजी आयुर्वेद के बहुत बड़े ज्ञाता थे उनका नाम पूरे भारतवर्ष में था उन्होंने डाबर और बैद्यनाथ जैसी संस्थाओं को फार्मूले दिए थे पिताजी मालवीय जी के साथ रहकर पहले बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में आयुर्वेद विभाग खोला उसके बाद वहां से लखनऊ विश्वविद्यालय से संबंध आयुर्वेद कॉलेज के उत्थान के लिए यहां लखनऊ बुला लिए गए सुन रहा होगा 1955 57 तब तो हम लोग बहुत छोटे थे लेकिन जो मैं कहानी सुनाने जा रहा हूं वह सन 1970 के गरीब की है हमारे पिताजी हर वर्ष लगभग पूरे वर्ष भर भारतवर्ष के किसी न किसी मेडिकल कॉलेज आयुर्वेद कॉलेज में परीक्षा लेने छात्रों की जाया करते थे हर बार वह घर से अपने साथ माताजी को बहन को या किसी न किसी को घुमाने के नाम पर ले जाते हैं अपने साथ इस बार उन्होंने हमको और उपरोक्त भाई को विष्णु दत्त शुक्ला को साथ चलने के लिए कहा हम लोगों को जाना था जम्मू कश्मीर जम्मू के मेडिकल कॉलेज में उनको छात्रों की परीक्षा लेनी थी हम दोनों भाई कुल्ले करो जम्मू पहुंचे वहां परीक्षा लेने के बाद हम लोगों को घुमाने के लिए कश्मीर लेकर गए उस समय कश्मीर में कोई आतंक नाम की चीज नहीं थी कई फिल्मों की वहां शूटिंग हो रही थी हम लोग गुलमर्ग पहलगाम शालीमार गार्डन सहित काफी जगहों पर घूमे और हाउसबोट में रुके हमारे पिताजी का वहां बहुत सम्मान था कोई परेशानी नहीं हुई उन्होंने हम लोगों को घुड़सवारी भी करवाई खूब खूब घूम कर थक गए फिर वहां से लौट कर हम लोग जम्मू आए यहां अचानक हमारे पिताजी ने लखनऊ की जगह हम लोगों से एक दिन रुक कर मां के दरबार मैं चलने को कहा हमारे पिताजी नित्य प्रति प्रातः 4:00 बजे से माता का पाठ किया करते थे उन्होंने हम लोगों को बताया कि मैं यहां कई बार आ चुका हूं यहां एक माता का मंदिर है बहुत सिद्ध है मैं वहां जाना चाहता हूं रात को चलेंगे सुबह वापस आ जाएंगे उस समय उस मां के दरबार कुल लोग नहीं जानते थे वही उसी दरबार को आज मां वैष्णो देवी जी का दरबार कहते हैं लेकिन उस समय उस दरबार की इतनी पूछ नहीं हुआ करती थी ना ही कोई वहां के बारे में ज्यादा जानता था पिताजी श्याम लोगों ने बहुत मना किया कि हम लोग थक गए हैं लखनऊ चलिए अगली बार आ जाइएगा लेकिन वह नहीं माने बोले हम इस बार जाना चाहते हैं आखिर में हम लोग राजी हो गए शाम को मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य के यहां हम लोग रुके थे वही सामान रखकर बस पर बैठे और कटरा नामक स्थान पर पहुंच गए उस समय कटरा कटरा में दो तीन दुकानें थी जहां प्रसाद मिलता था बत्ती भी नहीं थी वहां से हम लोगों ने प्रसाद लिया कोई भीड़ नहीं थी ज्यादा दर्शन करने वाले लोग भी नहीं थे ना भीड़ थी हम लोग मां के दरबार के लिए ऊपर चल दिए पिताजी और हम दोनों भाई के अलावा मां के दरबार के लिए जाने वाले और कोई यात्री भी नहीं थे हम लोगों पर अध कुंवारी तक पहुंचते तब तक काफी तेज तूफान आ गया उस तूफान से काफी तेज बारिश होने लगी इस बीच अध कुंवारी पर एक छोटा सा टीन शेड वाला कमरा बना हुआ था कुछ वक्त पहले एक बल्ब जल रहा था तूफान और बारिश के कारण वह बुझ गया हम लोग ही रुक गए उस छोटे से कोठरी में हम लोग अंदर भी भीग रहे थे उस समय पिताजी हम दो भाई और दो ऊपर पहाड़ के ग्रामीण यात्री वहां पर रुक गए अचानक पिताजी को क्या हुआ वह वहीं गिर गए और बेहोश हो गए नीचे फर्श पर पानी भरा हुआ था हम लोग घबरा गए क्या करें उनकी आंखें पलट गई बोल बंद हो गया और वह पानी में बेसुध पड़े रहे हम लोग वहां असहाय थे चारों ओर बारिश हो रही थी उस कोठरी में केवल 2 यात्री थे वह भी कुछ कर पाने में असमर्थ थे किसी तरह सवेरा हुआ रोशनी हुई उसी रोशनी के साथ अचानक हमारे पिताजी की आंख खुल गई और वह उठ बैठे हम लोग से बोले चलो ऊपर मां के दर्शन करने हैं हम लोगों ने कहा नहीं पिताजी नीचे चली आपकी तबीयत नहीं ठीक है लेकिन वह नहीं माने हम लोगों को साथ लेकर ऊपर दरबार में पहुंच गए सन 1970 में मां के दरबार में किसी तरह की कोई भीड़ नहीं थी बहुत कम दर्शन करने वाले लोग थे जो 2 यात्री थे वह गांव में कहीं चले गए थे हम लोगों ने वहां आराम से स्नान किया और गुफा में जाकर आराम से पिता-पुत्र सब ने मां के सुंदर दर्शन किए और बाहर आकर जो ही हम लोग बैठे कि अचानक हमारे पिताजी पुनः बेहोश हो गए हम लोग घबरा गए वहीं पर एक छोटा सा धर्मशाला बना हुआ था उसे पड़ेगी एक चारपाई पर पिताजी को लिटा दिया पिताजी की हालत फिर खराब हो गई जैसे कि रात को रास्ते में हो गई थी आंखें पलट गई और वह बेहोश हो गए आवाज बंद हो गई हम दोनों भाई परेशान हो गए इधर उधर भाग कि हम लोग डॉक्टर वैद्य की तलाश करने लगे वहां न कोई डॉक्टर था उस समय ना कोई भेज दे ना कोई मददगार दरबार में सन्नाटा था चंद्र जो लोग थे उन्होंने हम लोगों से कहा  दूर के गांव में एक वैद्य जी हैं उनको बुलाना पड़ेगा बाकी तो यहां जम्मू के अलावा और कोई इलाज नहीं कर सकता हम लोग असहाय से वहां पर रुक गए पिताजी बिस्तर पर बेहोश पड़े रहे वहां कोई सहारा नहीं मिल पा रहा था हम लोगों को कुछ समय ना मोबाइल था यहां कोई ना फोन ना कोई सूचना देने वाला हम लोग वही उनको लेकर पड़े रहे 1 दिन बीता रात को बहुत कोशिश की कोई दवा नहीं मिली पिताजी की हालत बिगड़ती जा रही थी दूसरे दिन तक हम लोगों के पास जो कुछ ₹50 गरीब था वह भी दूर से दूध मंगा कर पिलाने में पिताजी को समाप्त हो गया अब हम लोगों के पास पैसा भी नहीं बचा दोनों भाई वहां रोते बिलखते रहे और मां के दरबार में मत्था टेकते रहे  अब वहां समस्या यह थी कि हमारे पिताजी बहुत लंबे चौड़े भारी-भरकम थे उनको कैसे नीचे लाया जाए बेहोश से हाथ पैर ढीले हो चुके थे तीसरे दिन अचानक एक गांव वाला आया उसने कहा हम इनको पीठ पर लादकर कटरा तक पहुंचाएंगे नीचे हम लोगों ने कहा भैया हम लोगों का पैसा भी खत्म हो गया है आपको ₹50 हम लोग जम्मू में चल कर दे देंगे वहां तक बस से भी आप हम लोगों को अपने पैसे से ले चलें क्योंकि वहां पर कोई भीड़ भाड़ किसी तरह की चहल कदमी नहीं थी बिल्कुल सन्नाटा था वह व्यक्ति हम लोग की बात मानकर पिताजी को पीठ पर लादकर नीचे कटरा लाया वहां से वह अपने पैसे से हम लोगों को लेकर जम्मू पहुंचा वहां हमारे पिताजी और हम लोगों का सामान मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य कि घर में रखा था वहां उस व्यक्ति को ले गए और उसको ₹50 दिए और पिताजी की तबीयत खराब होने की सूचना वहां के डॉक्टरों को मिली सब वहां अफरा-तफरी मच गई दौड़ भाग शुरू हुई कि गुरु जी को क्या हो गया सब लोग तत्काल उनको लेकर मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में पहुंचे हम लोगों को डॉक्टर लेकर एक अलग कमरे में गए तब तक हम लोगों को यह सूचना मिली की पिताजी का निधन हो गया है वह खत्म हो चुके हैं अब हम लोग करते क्या आज की तरह मोबाइल फोन नहीं था आज की तरह संचार व्यवस्था नहीं थी प्रदेश सीबी गुप्ता जी मुख्यमंत्री थे इतना ही हमको याद है बाकी डॉक्टरों ने हम लोगों को इंजेक्शन लगा कर सुला दिया था और वहां से पिताजी के सब को लखनऊ लाने में सब ने असमर्थता जाहिर की लेकिन जब हम लोगों को होश आया तो हम लोगों ने कहा नहीं हम पिताजी की का अंतिम संस्कार लखनऊ में ही करेंगे लखनऊ से वायरलेस के द्वारा बातचीत चल रही थी हम लोगों को ज्यादा ध्यान भी नहीं है लेकिन हम लोग उनके शरीर को लखनऊ लाने पर अड़ गए उस समय कोई जहाज भी नहीं था जम्मू से लखनऊ के लिए कोई टैक्सी भी नहीं चलती थी कोई साधन नहीं था हम लोगों से कहा जा रहा था किन का अंतिम संस्कार यही कर दो अचानक जम्मू में भयंकर बारिश होने लगी हम लोगों के बहुत जिद करने पर जम्मू के जिलाधिकारी  मैं बहुत कोशिश करके एक एंबेस्डर कार वाले को लखनऊ के लिए तैयार किया उस टैक्सी वाले ने लखनऊ तक पिताजी को लाने का किराया ढाई हजार बताया हम लोग राजी हो गए और सभी लोग राजी हो गए टैक्सी का चालक सरदार था शो वह 48 घंटे में धीरे धीरे डिक्की में पिताजी की लाश को रखकर लखनऊ ले आया यहां हमारे पूरे भारतवर्ष से जितने भी रिश्तेदार या घरवालों से सब पहले ही एकत्र हो चुके थे हम लोग अनाथ होकर पिता को मां के दरबार में सौंपकर खाली हाथ उनके शरीर को लेकर लखनऊ पहुंचे थे लखनऊ में उनका दाह संस्कार बहुत भीड़ थी मुख्यमंत्री से लेकर निचले स्तर तक का हजारों की संख्या में लोग एकत्र थे पिताजी के दाह संस्कार के बाद भीड़ धीरे धीरे कम होती गई अंत में बच्चे सिर्फ हम परिवार के लोग चार भाइयों और दो बहनों में सिर्फ एक बहन की शादी हुई थी कि सब हम लोग सड़क पर थे लेकिन पता नहीं मां की कैसी कृपा थी और उनका आशीर्वाद धीरे-धीरे सब पुरानी भीड़ हटती गई और धीरे-धीरे सब की नौकरी लगती गई बहन की शादी भी हो गई हां बात हमारी रही तो पता नहीं क्यों जब भी हमारे ऊपर कभी कोई संकट आया तो किसी न किसी देवी रूप ने हमारे संकट को काटा हमेशा हमारे सारे संक गया गया गट देवियों ने कांटे कहीं भी अगर कोई समस्या हुई वह ऐसा लगा कि जैसे कोई आया और उस मैं हम को बचा लिया हमारे हाथों से कई मंदिर बन गए मेरी आत्मा में धर्म ऐसा समा गया कि वह आज भी पाप नहीं करने देता आपको आश्चर्य होगा पिताजी की मौत के बाद मेरे साथ जो मेरा भाई विष्णु दत्त शुक्ला था वह भी 1973 में ट्रेन दुर्घटना मैं खत्म हो गया मैं अकेला उस दरबार का गवाह रह गया और मैं पूर्ण रूप से मैं धार्मिक हो गया दोबारा मैं आज तक मां के दरबार नहीं गया लेकिन मेरी कोई भी मनोकामना आज 70 साल की उम्र हो रही है ऐसा नहीं हुआ कि पूर्ण ना हुई हो जो भी इच्छा मैंने की वह मां ने स्वयं आकर पूर्ण की देवियों के नाम भले ही अलग-अलग हो लेकिन मेरे सारे काम देवियों ने ही किए आज भी पिता की मौत के बाद से अब तक जितने भी कार्य मैंने किए हैं और जहां पर भी मैंने नाम कमाया है वहां सिर्फ देवियों का हाथ रहा आपको यह जानकर आश्चर्य होगा जिस मां के दरबार में मैं अपने पिता को छोड़ आया वह दरबार मां वैष्णो देवी जी का दरबार है आज जहां करोड़ों करोड़ों लोग अपनी मन्नत के लिए जाते हैं और वहां पूरी होती है सुनते हैं कि जिस कटरा पर मैंने बिजली नहीं देखी थी वहां की रौनक कुछ और है अप कटरा और मां वैष्णो देवी का नाम विश्व विख्यात हो चुका है वहां अब करोड़ों लोग मत्था टेक रहे हैं मैं खुशनसीब हूं कि मेरे पिताजी आचार्य शिवदत्त शुक्ल जी जो परम देवी भक्त थे मां वैष्णो देवी के दरबार में समाधि ले ली और हम लोगों को मां का ऐसा आशीर्वाद मिला कि आज जो चाहे वह कार्य पूर्ण हो जाता है पूरा परिवार संपन्न रहा मुझको भी पूर्ण सम्मान मिला महानगर क्षेत्र से सभासद हुआ सबसे बड़े समाचार पत्र स्वतंत्र भारत में चीफ रिपोर्टर बना खूब नाम कमाया वरिष्ठ अधिवक्ता रहा लेकिन इस सबके पीछे आशीर्वाद हमेशा देवियों का रहा इसी कारण मैंने कई मंदिर भी बनवाए कभी कोई पाप नहीं किया और अपने अलावा किसी को सताया नहीं मैं पैसे की ओर नहीं भागा मैंने जनता की सेवा की गरीबों की सेवा की असहाय व की सेवा की उसका आज मुझे जो परिणाम मिल रहा है वह  चमत्कारिक है जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते हम लाख कोशिश करते हैं कि हम मर जाएं लेकिन पता नहीं कौन सी शक्ति है जो हमको आकर बचा लेती है आप यकीन नहीं मानेंगे कि हमारा बुरा चाहने वाला एक व्यक्ति भी जिंदा नहीं बच पा रहा है जबकि मैं माता से कहता हूं मां मुझे मारो दूसरे को मत मारो आप सोचो आज उस मां वैष्णो देवी के दरबार में जाने के लिए लोग दीवाने हैं और एक मैं हूं कि मैं डंके की चोट पर कहता हूं मां मैंने अपने पिता को तुम्हें दिया है तुमको हमारी हर मनोकामना पूर्ण करनी होगी और वह हो रही है जिसको ना विश्वास हो वह हमसे संपर्क करके सत्यता का पता कर सकता है मैंने अपराध संवाददाता का का जो कार्य खतरनाक किया सैकड़ों हजारों* जान पर खेला मेरा कुछ नहीं बिगड़ा मेरा नाम होता चला गया जिसने भी मेरा बुरा चाहा उसका सर्वनाश हो गया और क्या चाहिए देवी मां ने सब कुछ दे दिया मुझे जो बड़े बड़ों को नसीब नहीं होता मां की दुआ से जितना दान मैंने किया जितनी चीज संपत्ति मैंने दान की हुआ लखनऊ क्या प्रदेश में किसी ने नहीं की होगी आधा लखनऊ मेरे हाथों बस गया सैकड़ों सैकड़ों परिवार आज मैं अपने हाथों से पाल रहा हूं जबकि मेरी आमदनी केवल ₹1000 पेंशन है ₹100 से ज्यादा मैंने आज तक कमाया नहीं है ना ही इससे ज्यादा पैसा मैं जेब में रखता हूं लेकिन जब जो चाहा करोड़ों अरबों का काम देवी मां संपन्न करा देती है जय माता दी अब इसके बाद में अपनी असली कहानी सुनाऊंगा आपको जो सुनकर आप आश्चर्य में पड़ जाएंगे जारी आरडी शुक्ला