अगर पुलिस अपराधियों को मुठभेड़ में ढेर ना करें तो कानून व्यवस्था संभाले कैसे आपको मैं बता रहा हूं आपबीती सन 1980 के दौर में हुई जबरदस्त मुठभेड़ों की कहानियां जहां से पुलिस मुठभेड़ों का सिलसिला शुरू हुआ वहीं से आरडी शुक्ला पत्रकार बना उसी की लेखनी से सब समझ मैं आ जाएगा

 आज मैं आपको उस स्थिति में इन पुलिस मुठभेड़ों की कहानी सुनाने जा रहा हूं जब विकास दुबे जैसे अपराधियों को पुलिस ने 1 सप्ताह के भीतर  ही ढेर कर दिया क्या आप सोचते हैं इस विकास दुबे से पहले और कोई इस तरह का जघन्य अपराध करने वाला पैदा ही नहीं हुआ था हां यह जरूर है इस समय काल अलग था इस तरह का मीडिया नहीं था इतना शोर शराबा हाय हाय नहीं मचा करती थी पत्रकार भी समझ लेते थे  पुलिस प्रशासन का खुला साथ दो और अपराधी को परास्त करो और पत्रकार भी बहुत सीमित है यहां तक की के रोज दो  चार हुआ करते थे जनता की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए हम लोग कार्य  करते थे और यही हम लोगों को सिखाया जाता था बड़े वरिष्ठ पत्रकारों द्वारा कि जितना हो सके जनता की सेवा करो इसी उद्देश्य हम लोग पुलिस प्रशासन के साथ मिलकर उसका साथ देते थे और अपराधियों का नाश करवाते थे इसीलिए उस मीडिया को लोग आज भी याद करते हैं इमानदारी और इंसानियत उसका पहला धर्म था सच्चाई अखबार का पहला सबक होता था उस समय अखबार के अलावा और कोई मीडिया तंत्र नहीं था अखबार भी दस्तावेज होता था और होता है जो लिखा जाएगा उस सत्य होना चाहिए क्योंकि वह अदालत तक सामने रखा जा सकता है आज बिल्कुल उल्टा है प्रिंट मीडिया है इलेक्ट्रॉनिक मीडिया है सोशल मीडिया है और ना जाने कौन-कौन से मीडिया पैदा हो गए हैं समझ में नहीं आता जिसके पास एक टेलीफोन नेट मौजूद है वह पत्रकार हो जाता है क्या पत्रकारिता की यही परिभाषा है जब मैं पत्रकारिता का अपना साक्षात्कार देने गया था तो पूछा गया था पत्रकारिता की परिभाषा नहीं बता पाए थे तब हमारे वरिष्ठ संपादक जी ने बताया पत्रकार संत होता है जो समाज की सेवा लेखनी द्वारा करता है और संत सत्संग द्वारा जनता का सुधार करता है क्या आज का मीडिया यह कर रहा है वह अपराधी तत्वों से मिलकर उनके पैसे के बल पर हमारी पुलिस को कमजोर कर रहा है नेताओं से मिलकर अपराधियों को बचा रहा है आज जो विकास पैदा हो रहे हैं वह पिछले दौर की देन है ना कि यह अचानक आज हो गया सन 1980 के दौर मे जब मैं अंग्रेजों के चर्चित अखबार द पायनियर और हिंदी के अखबार स्वतंत्र भारत का चीफ रिपोर्टर था साथ में मेरी विशेषज्ञता क्राइम रिपोर्टर की थी शो मे सफलतापूर्वक करता रहा और स्वतंत्र भारत अखबार को देश में नंबर 1 बनवाने में जान माल सब  दांव पर लगाकर जनता की सेवा करता रहा कलम के द्वारा मैंने उस काल के दुर्दांत डाकुओं अपराधियों हत्यारों लुटेरों छठ मैया अपराधियों माफियाओं के भयंकर कारनामे देखें और लिखें मैंने रातों-रात ना जाने कितनी मुठभेड़ में देखी यह कैसे होती हैं इनको करने के लिए पुलिस की क्या मजबूरी होती है यह सब आप नहीं समझ सकते आप चैन से घरों में सोते हैं यह अपराधियों से जूझते हैं कि आप चैन से सो सकें हां ठीक है उस समय प्रदेश की आबादी 10 15 करोड़ से ज्यादा नहीं थी आज प्रदेश की आबादी 25 करोड़ से कम नहीं होगी इसलिए सरकार का दायित्व बहुत ज्यादा बढ़ जाता है इतनी बड़ी संख्या मैं कानून का राज कायम रखना जबकि चारों ओर पिछले तीन चार दशक से अपराधियों का जबरदस्त राज है उसको संभालना मामूली काम नहीं है आप  शायद नहीं मालूम होगा कि हमारी पुलिस प्रशासन कितनी मेहनत करके कानून व्यवस्था को कायम रखते हैं उस पर से कितने आरोप उन पर लगते हैं मीडिया लगाता है और अब तो जबरदस्त लगाता है क्योंकि बहुत तरह के मीडिया अब बाजार में है पुलिस की संख्या बहुत कम है आज अपराधी कमा रहा है उसके पास खूब पैसा है बल है राजनीत है अगर कोई दवा हुआ है तो वह है पुलिस जब कभी भी पुलिस पर वार हुआ और अगर योगी जैसा नेतृत्व रहा तभी अपराधियों का संहार हो पाया अन्यथा पूरी तरह से अपराधी सरकार पर हावी रहे क्या है वह किसी पद पर किसी जगह हो वह जो चाहते थे वह होता रहा इसी कारण हमारी पुलिस कभी दवाई जाती रही और कभी-कभी बी पी सिंह  जैसे तेज मुख्यमंत्री बने कल्याण सिंह  पैदा हुए और अब योगी जी जैसा व्यक्ति प्रदेश को संभाल रहा है इमानदारी से मुझे 70 साल का ज्ञान है आज यही सब बताने के लिए मैं आपको तंग कर रहा हूं कि आप जान ले यह बेटाइम बीमार होते हुए हृदय रोगी होते हुए 70 साल की आयु में पत्रकारिता क्यों कर रहा हूं खबरबाजी क्यों कर रहा हूं क्योंकि मुझे विकास  द्वारा आठ पुलिसकर्मियों की क्रूरता के साथ हत्या किए जाने की खबर  ने झकझोर कर रख दिया और मैं अपने दिल के जज्बात नहीं रोक पा रहा हूं मजबूर हूं आदत ह सच्चा ईमानदार पत्रकार रहा हूं पैसे रुपए कभी कमाए नही नाइस और सोचा इसलिए सोचा आप सबको अपने मित्रों को सहयोगी यों को इतना तो बता चलूं कि मैं वही हूं  जिसने सर 80 से 90 के बीच में पूरे एक दशक प्रदेश के कुख्यात क्षेत्रों चंबल जमुना के बीहड़ों कानपुर देहात के दुर्दांत दुर्दांत डाकुओं से मुलाकात की उनकी और पीएसी पुलिस की सीधी होती मुठभेड़ में देखी डकैतों के कारनामे देखें फिर उनके मुठभेड़ में मारे जाने के बाद उनकी हाल देखें 25 25 लोगों  के कत्लेआम देखें कैसे निर्मलता से 1 साल के बालक से लेकर 90 साल तक के वृद्ध की हत्याएं होते देखी डाकू अपराधियों के वह कृत्य देखे हैं घटनास्थल पर जा जाकर की रोंगटे खड़े हो जाते थे मान लीजिए कि मेरा कार्य ही था मुर्दे गिनना और उनकी खबर बनाकर अखबार में देना उसी से हमारा वेतन बनता था वही हमारी रोजी-रोटी थी ऐसा नहीं कि पुलिस से दोस्ती रखता था तो  पुलिस को खुली छूट दे रखी है ऐसा नहीं उदाहरण मौजूद है कि फर्जी मुठभेड़ करने वाले तीन पुलिसकर्मियों को मैंने फांसी करवाई है माधवपुर कांड मैंने लिखा उसी आधार पर जांच हुई और कार्रवाई हुई दूसरी तरफ जगन अपराधियों की सामने मुठभेड़ में मरवाया और बड़ी बड़ी खबर दी पुलिस के पक्ष में आज की तरह मीडिया गिरी नहीं करता  कि अपराधियों के पैसे पर अपनी पुलिस को कमजोर करें बेनकाब करें हर समय उनके पीछे पड़े रहे अखिलेश को भी तो वही बचाते हैं नहीं तो मीडिया एक कदम चल नहीं सकता  हां मानते हैं पुलिस में भी गलत लोग है लेकिन सही ज्यादा है ठीक इसी तरह पत्रकारिता में भी अच्छे लोग हैं असल में मुठभेड़ों के मामले मे कहानी तब शुरू होती है जब प्रदेश के मुख्यमंत्री बी पी सिंह बने उनका अपराधियों से इतना भिड़ंत शुरू हो गई कि डाकुओं ने उनके भाई जो न्यायाधीश थे उनकी घर में घुसकर इलाहाबाद में हत्या कर दी इसके बाद वह क्रोधित हो गए और उन्होंने पूरे अपराधियों और डाकुओं के सफाई का अभियान शुरू कर दिया वैसा अभियान ना कभी हुआ है और ना किसी को  देखने को मिलेगा मेरा सौभाग्य था एकमात्र पत्रकार था बड़े अखबार का वह भी पुलिस  समर्थक इसलिए मुझको रात को ही मालूम हो जाता था आज कहां-कहां मुठभेड़ हो नहीं है और लोग मारे जाने हैं बड़ा विचित्र माहौल था जब प्रदेश के अपराधी डर के मारे प्रदेश छोड़ गए या मार दिए गए तब यहां तक कि निर्दोष ओ पागल लोगों को भी पकड़ पकड़ कर मार दिया गया हम लोग यह सब देखते देखते तंग हो गए फिर भी पुलिस पर उंगली नहीं उठाई कारण था जनता की रक्षा के लिए आखिर आती तो पुलिस ही है इसका एक बार मनोबल गिरा देंगे तो शायद बहुत बड़ी क्षति होगी और उस समय मुठभेड़ आसान भी था ना कोई मानव अधिकार था और ना कोई जांच-पड़ताल कड़ी इसका फायदा कांग्रेश ने खूब उठाया चुनाव के दौरान अपराधियों को डरा डरा कर खूब वोट चुनाव में अपराधियों से छपवा लिए यह सब हम लोग देखते रहे हैं अपराधीकरण होता रहा राजनीति का यह सब देखने के बाद आज होने वाले मुठभेड़ पर तरह-तरह से कहानी बना कर दिखाने वाले लोग पुलिस को गिराने के अपराधियों से पैसा लेकर ऐसा कर रहे हैं इस प्रकार की मीडिया जो पुलिस का पीछा करें क्यों एनकाउंटर ना कर पाए वह अपराधी को सजा ना दे पाए जांच पड़ताल ना कर पाए उसके कदमों की सूचना अपराधियों तक पहुंचा दी जाए इसका  गिरोह बना लिया जाए यह उचित नहीं है आज विकास और उसके  गिरोह को साफ करने के अलावा पुलिस के पास बचा क्या था उस पर भी अगर योगी जैसा मुख्यमंत्री ना होता तो शायद यहां पर भी कुछ और हो जाता सब कुछ साफ साफ हो गया योगी जी ने घटना की गंभीरता को देखते हुए जिस बुद्धि और रणनीति का परिचय दिया वह काबिले तारीफ थी उसी के कारण विकास की रोका 1 सप्ताह के अंदर गिरोह सहित सफाया हो गया योगी जी ने घटना के तुरंत बाद जांबाज पुलिस अधिकारियों को श्रद्धांजलि देते हुए पुलिस को 1 सप्ताह की खुली छूट दे दी बस पुलिस को चाहिए क्या था सरकार से छूट परिणाम भी सामने आ गया अब इस मुठभेड़ को लेकर जिसको राजनीति करनी है करें लेकिन कानून व्यवस्था कायम रखने के लिए कठोर निर्णय अवश्य ही लेने पड़ते हैं योगी सरकार ने लिए वह आज से नहीं ले रहे हैं बहुत पहले से ले रहे हैं आज योगी जी के इन काउंटरों का हिसाब मांगने वाले लोग अपने गिरेबान में झांके सन 80 और 85 के बीच के रिकॉर्ड को खोल कर देखें कांग्रेस ने क्या किया था कितने बेगुनाह को मारा गया था जिसके कारण  कुछ नहीं था इन मुठभेड़ों का विरोध करने वाले अपराधियों के घर जा जाकर नेता बन गए यही नहीं बाद में मुख्यमंत्री बने और  असामाजिक तत्वों अपराधियों के वोट मिलने लगे उस समय ना भा जा पा थी और ना ही योगी जी और मोदी जी आज जो भी हो रहा है वो केवल अपराधियों के खिलाफ और वह जायज है जैसे को तैसा मिलना चाहिए योगी जी किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं करते साधु है संवेदनशील है सबकी मदद करते हैं इसी कारण वह बहुत ज्यादा लोकप्रिय हो गए हैं यही लोगों को खलता है जनता को नहीं योगी जी प्रदेश को संभाले रहे हैं बस यही हमारे प्रदेश का सौभाग्य  है जिस संकट के दौर से प्रदेश को निकाल रहे हैं यह उनकी हिम्मत और शासन चलाने का ढंग है जिसकी जितनी तारीफ की जाए वह कम है